कविता के बहाने
होशंगाबाद में बस स्टैंड और थाने के पास सतरस्ता़ है। वहां वास्तव में एक दो नहीं पूरे सात रास्ते आकर मिलते हैं। यहां से एक रास्ता रेल्वे स्टेशन को जाता है तो दूसरा बस स्टैंड को। तीसरा थाने के सामने से स्टेडियम की तरफ। चौथा इतवारा बाजार होता हुआ मोरछली चौक को। पांचवा तहसील के बाजू से होता हुआ इतवारा बाजार में से निकलकर सराफा चौक होता हुआ सीधा नर्मदाघाट तक। छठवां रास्ता कंजर मोहल्ले की तरफ और सातवां रास्ता रेल लाइन के नीचे से निकलकर ग्वालटोली की तरफ। रेल्वे स्टेशन की तरफ जाने वाली सड़क पर कोने में एक पोस्ट आफिस हुआ करता था। पोस्ट आफिस के पीछे एक आटा चक्की। इस आटा चक्की का नाम था चंद्रप्रभा फ्लोर मिल। चक्की संतोष रावत चलाते थे। संतोष मेरे मित्र थे। पहले उन्होनें बीएससी किया और फिर एमए,एलएलबी। लेकिन नौकरी नहीं मिली। तय किया कि खाली बैठने से अच्छा है,चक्की चलाई जाए। बस बैठ गए चक्की पर। पर वे केवल बैठते नहीं थे,बाकायदा चक्की चलाते भी थे। मैंने भी उन्हीं दिनों (यानी 1979) नेहरू युवक केन्द्र में नौकरी शुरू की थी। बस जब छुट्टी होती या समय होता तो चक्की पर जा बैठता। वह हमारा एक तरह से अड्डा था। कुछ और भी लोग जुटते थे। दुनिया जहान की बातें होती। संतोष भी साहित्य में रूचि रखते थे और लिखते भी थे। ये कविताएं उसी दौर की हैं। संतोष आजकल भोपाल में भारतीय स्टेट बैंक में अधिकारी हैं।