न बदलने से
इस दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनिया है कि चलती रहती है
दुनिया है कि बदलती रहती है।
हमारे रोने
न रोने से
इस दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनिया है कि हंसती रहती है
दुनिया है कि चहकती रहती है।
हमारे होने
न होने से
इस दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनिया है कि ढलती रहती है
दुनिया है कि मचलती रहती है।
हमारे गलने
न गलने से
दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनिया है कि गलती नहीं है
दुनिया है कि पिघलती नहीं है
हमारे खटने
न खटने से
दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनिया है कि खटती रहती है
दुनिया है कि भटकती रहती है।
हमारे मिटने
न मिटने से
दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनिया है कि मिटती रहती है
दुनिया है कि संवरती रहती है।
हमारे
बदलने, रोने,गलने,खटने,मिटने, होने
और ऐसी तमाम अनगिनत क्रियाओं से
किसी को फर्क पड़े न पड़े
हमें तो फर्क पड़ना ही चाहिए
वरना
बदलने,रोने,गलने,खटने,मिटने,होने
और ऐसी तमाम अनगिनत क्रियाओं
का क्या औचित्य !
0 राजेश उत्साही